Tempo Hanseat Journey : 100 सालों से आज भी भारतीय सड़कों की शान है ये वाहन, जानें इसका अब तक का सफर

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Tempo Hanseat Journey

Tempo Hanseat Journey : इंडियन मार्किट में बेशक इन दिनों हाई टेक्नोलॉजी और हाई फीचर वाली गाड़ियां लांच हो रही है। लेकिन क्या आप जानते है हमारे देश में पुराने वाहनों को लेकर भी आज भी लोगो में क्रेज देखते बनता है। आज की नई पीढ़ी शायद इन पुरानी गाड़ियों के बारे में न जानती हो, लेकिन आज हम आपको इन पुराने वाहनों में शामिल Tempo Hanseat के बारे में बता रहे है। दरअसल ये ऐसा वाहन जो फर्स्ट वर्ल्ड वॉर से लेकर अब तक 100 वर्षो से सड़कों की शान बढ़ा रहा है। 

Bajaj Tempo Hanseat 80 के दशक के दौरान परिवहन और माल वाहक का एक लोकप्रिय साधन था। वैसे आपने भी इन गाड़ियों को कहीं-न-कहीं देखा होगा। आज भी Tempo Hanseat छोटे कस्बों और गावों में आसानी से दिख जाती है। दरअसल ये मूलतः सवारीवाहक और मालवाहक था जिसे Force Motors बनाया करती थी। वाहन की संरचना ऐसी है कि यह भीड़भाड़ वाले शहर की सड़कों के लिए एकदम सही है। इसके अलावा, यह भारतीय सड़कों की सबसे खराब स्थिति से निपट सकता है। इस 3-व्हीलर में 452-सीसी, ट्विन-सिलिंडर, 2-स्ट्रोक पेट्रोल इंजन था जो अगले चक्के के ठीक ऊपर लगा हुआ था।  ये मोटर अधिकतम 20 बीएचपी उत्पन्न किया करता था। 

Tempo Hanseat प्रथम विश्व युद्ध में डाक सेवा पहुंचने के आई काम 

Tempo Hanseat Journey

आपको बता दें ये अजीब लुक्स वाले Tempo Hanseat 3-व्हीलर 60 के दशक में बिकना शुरू हुए था। ये जर्मन गाडी थी जिसका निर्माण प्रथम विश्व युद्ध (First world war) के दौरान शुरू हो चुका था। पहले पहल इसका इस्तेमाल डाक पहुंचाने के लिए हुआ। फिर टेंपो हैनसीट को छोटे व्यवसायी पुरुषों और युद्ध के बाद के जर्मनी के किसानों के लिए एक सस्ते परिवहन के रूप में विकसित किया गया था। हालाँकि बाद के वर्षों में ये दुनिया भर में दिखाई दी। हमारे देश में इसको टेम्पो (हेनसीट) कहा गया और इसको देश में लाने वाले बजाज ऑटो वाले थे।

टेम्पो हैनसीट का निर्माण भारत में फिरोदिया की कंपनी बजाज-टेम्पो द्वारा किया गया था। हालांकि पहले इसे भार वाहक के रूप में बनाया गया था, लेकिन जल्द ही इसे सवारिया  ढोने के काम में लिया जाने लगा। शायद आज भी छोटे छोटे इलाकों में ये सेवा में मौजूद दिख जाए। वैसे आप इसे आज भी भारत के कई ग्रामीण इलाको में लोगों को फेरी लगाते हुए देख सकते थे। 

भारतीय ग्रामीण इलाकों की शान रहा Jugaad

भारतीय हमेशा सबसे सस्ता संभव तरीका खोजने के लिए चीजों के आसपास एक रास्ता ढूंढते हैं। भले ही मोटर वाहन अधिनियम और अन्य कानून काफी सख्त हैं और यहां तक कि संशोधित वाहन भारतीय सड़कों पर अवैध हैं, फिर भी कई “Jugaad” हैं जो देश भर में स्वतंत्र रूप से चलते हैं। ये कम लागत वाले वाहन हैं जो ज्यादातर देश के छोटे शहरों और ग्रामीण हिस्सों के लिए विकसित किए गए हैं। यहाँ कुछ ऐसी makeshifts हैं जिन्हें आप निश्चित रूप से आउटलैंडिश कह सकते हैं, कम से कम कहने के लिए।

400 CC का टू स्ट्रोक पेट्रोल इंजन, 15 हॉर्स पावर की शक्ति, पेट्रोल में डीजल या मिटटी का तेल और मोबिल आयल मिलाकर लोगों ने इसको खूब दौड़ाया। बता दें ग्रामीण इलाकों में तो उसके चारों तरफ लोहे के एंगल वेल्ड कर दिए जाते थे ताकि उनको पकड़कर लोग इस पर लटकसकें। सबसे बड़ी बात यह है की इसमें एक बार में बीस पच्चीस सवारी भरा जाना आम था। वो सफर शानदार हुआ करता था जब लोग वापसी में इसके धुएं काला चेहरा साबुन से बार बार धोया करते थे। दरअसल इसकी सवारी के दौरान किलो दो किलो डीजल का धुआं अंदर जाना आम ही था।

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