Power of OM Mantra: किसी मंत्र के उच्चारण से पहले ओम क्यों बोलते हैं, जानें इसके पीछे का रहस्य
Power of OM Mantra: सनातन धर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति देव उपासना के दौरान शास्त्रों, ग्रंथों में या भजन और कीर्तन के दौरान ऊं महामंत्र को कई बार पढ़ता, सुनता या बोलता है। वैसे किसी भी मंत्र से पहले ओम (OM) के उच्चारण के बारे में आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों इसे सर्वप्रथम उच्चारित किया जाता है? तो आइए आपको बताते है कि किसी भी मंत्र से पहले ओम के उच्चारण का क्या मतलब है और इसके बारे में क्या कहते हैं धर्मग्रंथ?
ऊँ शब्द में वेदों का सार, तपस्वियों और योगियों का सार समाया है
ओम शब्द तीन अक्षरों के मेल यानी कि अ, उ और म से मिलकर बना है। इसे संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक माना गया है। इसके उच्चारण मात्र से ही जीवन से सारी नकारात्मकता खत्म हो जाती है। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार किसी भी मंत्र से पहले ओम के उच्चारण से व्यक्ति को अत्यंत पुण्य मिलता है। ईश्वर की कृपा से मंत्रोच्चारण करने वाले जातक को परम गति प्राप्त होती है। वहीं कठोपनिषद में बताया गया है कि ओम शब्द में वेदों का सार, तपस्वियों और योगियों का सार समाया हुआ है। इसलिए जब भी किसी मंत्र का जप करें उसके पहले ओम मंत्र का जप जरूर करें।
मंत्र की शक्ति को बढ़ाता है ॐ का उच्चारण
गोपथ ब्राह्मण और माण्डूक्य उपनिषद में भी ओम मंत्र की महिमा का बखान मिलता है। गोपथ ब्राह्मण के अनुसार किसी भी मंत्र के उच्चारण से पहले ओम मंत्र का उच्चारण अत्यंत आवश्यक है। मान्यता है कि किसी भी मंत्र से पहले अगर ओम शब्द का जप किया जाए तो मंत्र के प्रभाव से जातक पर ईश्वर की कृपा बरसती है और मंत्र का प्रभाव भी कई गुना बढ़ जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार किसी भी मंत्र से पहले यदि ओम शब्द जोड़ दिया जाए तो वह पूर्णतया शुद्ध और शक्ति संपन्न हो जाता है। किसी देवी-देवता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ओम लगाना आवश्यक होता है। मान्यता है कि ओम के बिना कोई भी मंत्र फलदायी नहीं होता, चाहे उसका कितना भी जप कर लिया जाए।
अन्य धर्मों में भी है ॐ की महत्वता
आपको बता दें सनातन धर्म ही नहीं बल्कि भारत के अन्य धर्म-दर्शनों ने भी ओम शब्द की महत्ता को स्वीकारा है। बौद्ध-दर्शन में “मणिपद्मेहुम” का प्रयोग जप एवं उपासना के लिए होता है। इस मंत्र के अनुसार ओम को “मणिपुर” चक्र में अवस्थित माना जाता है। यह चक्र दस दल वाले कमल के समान है। जैन दर्शन में भी ओम के महत्व को बताया गया है। महात्मा कबीर ने भी ओम के महत्व को स्वीकारा और इस पर “साखियां” भी लिखीं। वहीं गुरु नानक जी ने भी ओम के महत्व का बखान किया है।
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