Guruparv Special : श्री गुरु नानक जयंती पर, इस बार इन प्रसिद्ध गुरुद्वारों के करें दर्शन
Sri Guru Nanak Jayanti 2022 : सिखों के प्रथम गुरू नानक देव जी के प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक देवजी का प्रकाश उत्सव (जन्म)15 अप्रैल, 1469 ई. में तलवंडी राय भोई नामक स्थान पर हुआ, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।
उनका पूजा स्थल गुरुद्वारा है, जिसका न केवल ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व है, बल्कि इसलिए भी खास है क्योंकि यह सभी समुदायों के लोगों का स्वागत करता है और उनके साथ समान व्यवहार करता है। यहां गुरुपर्व के अवसर पर भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध गुरुद्वारों की सूची दी गई है।
गुरु नानक, जिन्हें बाबा नानक भी कहा जाता है, सिख धर्म के संस्थापक थे और दस सिख गुरुओं में से सबसे पहले गुरु थे। उनका जन्म दुनिया भर में कटक पूरनमाशी, यानी अक्टूबर-नवंबर में गुरु नानक गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है। आने वाले 8 नवंबर को गुरु नानक गुरु पर्व मनाया जाएगा।
गुरुद्वारा बाबा अटल साहिब
यह प्रसिद्ध गुरुद्वारा गुरु हरगोबिंद सिंह के पुत्र बाबा अटल की मृत्यु के सम्मान में बनाया गया था। 1778 और 1784 के बीच बने इस गुरुद्वारे में नौ मंजिला मीनार है जो अपनी खूबसूरत वास्तुकला के लिए भी जानी जाती है।
श्री हरमंदिर साहिब स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। यह सिखों के लिए सबसे ज्यादा पूजनीय स्थानों में से एक है और सबसे लोकप्रिय गुरुद्वारा है। गोल्ड से बने इस गुरुद्वारे में पहले गोल्ड नहीं था। श्री हरमंदिर साहिब जिसे दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है, मूल रूप से पांचवें सिख गुरु द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया था।
अमृत का कुंड, गुरु राम दास नामक चौथे गुरु द्वारा स्थापित किया गया था और पांचवें गुरु ने पवित्र तालाब के बीच में एक मंदिर बनाने का फैसला किया। यह गुरुद्वारा सिखों के लिए बनाया गया पहला तीर्थ स्थल था ताकि वे एक साथ पूजा कर सकें।
तख्त श्री दमदमा साहिब
यह एक बहुत ही प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण गुरुद्वारा है क्योंकि गुरु गोबिंद सिंह ने पंजाब के इस गुरुद्वारे में श्री ग्रंथ साहिब का बीर लिखा था। साथ ही यह वह स्थान है जहाँ गुरुजी ने सिंहों की आस्था की परीक्षा ली थी।
गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब,सरहिंद
फतेहगढ़ साहिब सिख धर्म के इतिहास में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। ऐसा माना जाता है कि सिख धर्म के उदय से मुगल खुश नहीं थे और वह जोर जबरदस्ती से लोगों को धर्म बदलने के लिए मजबूर कर रहे थे। इसके चलते एक लंबा युद्ध चला। ऐसे ही एक युद्ध के दौरान गुरु गोबिंद सिंह का परिवार अलग-थलग हो गया। उनकी मां माता गुजरी अपने बच्चों फतेह सिंह और जोरावर सिंह से अलग हो गई।
इसी बीच मुगलों ने बच्चों को पकड़ लिया और उन पर धर्म बदलने के लिए जोर डाला। बच्चों ने जब ऐसा करने से इनकार किया तो उन्हें मार डाला। तब से बच्चों की शहादत को याद करते हुए और उन्हें सम्मान देने के लिए लोग इस गुरुद्वारे में आते हैं।
गुरुद्वारा तरनतारन साहिब
गुरुद्वारा तरनतारन साहिब बहुत ही प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण गुरुद्वारा है आपको तरनतारन साहिब जरूर जाना चाहिए। यह गुरुद्वारा बेहद खूबसूरत है और साथ ही हर महीने अमावस्या के दिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
गुरुद्वारा पोंटा साहिब
पोंटा साहिब, भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश में अवस्थित है। यह सिरमौर जिल्ले के उत्तर दिशा मे जमुना नदी के किनारे, जहां गुरू गोबिंद सिंह ने अपने जीवन के 4 वर्ष बिताए और इसी जगह पर दशम ग्रन्थ की रचना की। गुरुद्वारे का एक संग्रहालय है, जो गुरु के उपयोग की कलम और अपने समय के हथियारों को दर्शाती है। जमुना नदी के किनारे "पोंटा साहिब" का ये गुरुद्वारा सिख संप्रदाय के लिए बहुत बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।
तख्त सचखंड श्री हुजूर अबचल नगर साहिब गुरुद्वारा
महाराष्ट्र में स्थित तख्त सचकंद श्री हजूर अचल नगर साहिब गुरुद्वारा भारत के सबसे खूबसूरत गुरुद्वारों में से एक है। यह 1832 में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 10 वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की याद में बनाया गया था क्योंकि उन्होंने इस स्थान पर अंतिम सांस ली थी।