Maternity Leave : सभी वर्किंग गर्भवती महिलाएं मैटरनिटी लीव की हक़दार, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- फिर चाहे वो महिलाएं स्थायी कर्मचारी हों या कांट्रेक्ट पर काम कर रही हों
Khari Khari News :
Maternity Leave : मां बनना हर महिला के लिए एक सुखमय एहसास होता है। ऐसे में हर कामकाजी महिला अपने काम के साथ बच्चे को भी पूरा वक्त देना चाहती हैं। इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सभी प्रेग्नेंट वर्किंग विमेन मैटर्निटी बेनिफिट की हकदार हैं। जो उन्हें गर्भावस्था के दौरान मिलने वाले लाभ हैं। उनके परमानेंट या कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने से फर्क नहीं पड़ता। उन्हें मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट 2017 के तहत राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो एक कामकाजी महिला को उसके काम की प्रकृति के आधार पर मैटरनिटी बेनिफिट से वंचित नहीं करता हो। अदालत ने कहा कि मातृत्व लाभ केवल नियोक्ता और कर्मचारी के बीच वैधानिक अधिकार या संविदात्मक संबंध से उत्पन्न नहीं होता है, बल्कि ये उस महिला की पहचान का एक मौलिक और अभिन्न अंग है जो परिवार शुरू करने और एक बच्चे को जन्म देने का विकल्प चुनती है. बच्चे को साथ ले जाने की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है जो देश का संविधान अपने नागरिकों को अनुच्छेद 21 के तहत देता है। इसके अलावा, बच्चे को न ले जाने का विकल्प इस मौलिक अधिकार का विस्तार है।
मातृत्व अवकाश या मैटरनिटी लीव क्या है?
मातृत्व अवकाश या मैटरनिटी लीव वो है, जिसके तहत एक महिला कर्मचारी को उसकी गर्भावस्था, बच्चे के जन्म और उसकी शुरुआती देखभाल के लिए छुट्टी दी जाती है। महिलाओं को इस अवकाश के लिए उसकी कंपनी पैसों का भुगतान भी करती है। यानि इस लीव में महिलाओं को उनकी पूरी सैलरी दी जाती है।
जानकारी के अनुसार, जस्टिस चंद्र धारी सिंह की बेंच ने दिल्ली स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में संविदा पर काम करने वाली एक गर्भवती महिला को राहत देते हुए यह टिप्पणियां कीं। कंपनी ने महिला को मैटर्निटी बेनिफिट देने से इनकार किया था। कंपनी का कहना था कि लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में संविदा कर्मचारी को मैटर्निटी बेनिफिट देने का कोई क्लॉज नहीं है।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट के प्रावधानों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह बताता हो कि किसी वर्किंग विमेन को प्रेग्नेंसी के दौरान राहत देने से रोका जाएगा। मातृत्व लाभ किसी कंपनी और कर्मचारी के बीच करार का हिस्सा नहीं है। वो महिला की पहचान का एक मौलिक अधिकार है, जो परिवार शुरू करने और बच्चे को जन्म देने का विकल्प चुनती है।
जस्टिस सिंह ने कहा कि अगर आज के युग में भी एक महिला को अपने पारिवारिक जीवन और करियर में ग्रोथ के बीच किसी एक को चुनने के लिए कहा जाता है तो हम एक समाज के रूप में फेल हो रहे होंगे।
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