Adampur by election: बंटाधार होने से बाल-बाल बची बीजेपी

आदमपुर में हारने पर बीजेपी का हो जाता बिस्तर गोल

हार की फजीहत का मंडला गया था खतरा

हार का सिलसिला टूटने से मिली राहत

2024 के लिए दावेदारी रह गई मजबूत

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Adampur by election 2022

कुलदीप श्योराण चंडीगढ़ : 

Adampur by election 2022 : आदमपुर उपचुनाव में जीत ने भाजपा को "बंटाधार" होने से बचा लिया है। अगर आदमपुर में बीजेपी हार जाती तो जहां एक तरफ खट्टर सरकार की भारी फजीहत होती वहीं दूसरी तरफ बीजेपी सरकार के लिए भी खतरा पैदा हो सकता था।अगर कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश चुनाव जीत जाते तो अधिकांश निर्दलीय प्रत्याशी 2 साल बाद के सियासी भविष्य को ध्यान में रखते हुए पाला बदल कर सकते थे। 

बीजेपी सरकार की विदाई का रास्ता हो सकता था तैयार

इसके अलावा भूपेंद्र हुड्डा ताकतवर हो जाते और वह सरकार के ऊपर आक्रामक होकर अटैक करते। जनता में भी यह संदेश जाता कि भाजपा सरकार फेल हो चुकी है और उसके खिलाफ जनादेश तैयार हो गया है। बरोदा और ऐलनाबाद में पहले ही दो उपचुनाव हार चुकी भाजपा आदमपुर में हारने का रिस्क नहीं ले सकती थी। भाजपा के लिए हार की हैट्रिक से बीजेपी सरकार की विदाई का रास्ता तैयार हो सकता था।

पासा पलटने के थे आसार 

 8 साल से हरियाणा में सरकार चला रही भाजपा के लिए आदमपुर का उपचुनाव बेहद आसान माना जा रहा था क्योंकि कुलदीप बिश्नोई के 63000 और भाजपा के 35000 वोटों के बलबूते पर वह 100000 वोट हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही थी। भाजपा को यह पूरा भरोसा था कि भजनलाल का अभेध गढ़ होने के कारण यहां पर उसे कोई परेशानी नहीं होगी और वह आराम से चुनाव जीत जाएगी लेकिन भजनलाल परिवार विरोधी और बीजेपी विरोधी सारे वोटरों के कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश के साथ लामबंद होने से चुनाव में पासा पलटने के आसार बन गए थे। 

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15000 वोटों की जीत बीजेपी को चाहे बड़ी नजर आ रही है लेकिन हकीकत यह है कि 8000 वोटों की पलटी चुनाव का परिणाम बदल सकती थी। अगर ऐसा होता तो भाजपा सरकार के लिए उल्टी गिनती शुरू हो जाती। भाजपा आदमपुर के उपचुनाव को 2024 की तैयारी मानकर चल रही थी। जिस तरह से जींद उपचुनाव में जीत ने भाजपा की सत्ता में वापसी करा दी थी इसी तरह आदमपुर के जरिए भाजपा बड़ा धमाका करना चाहती थी लेकिन भव्य बिश्नोई की बड़ी जीत नहीं होने के कारण भाजपा के लिए बड़े दावे करना तो मुश्किल हो गया है।

जीत के साथ ही उसकी साख बच गई है और उसकी सरकार पर लगने वाले वाले निशान भी टल गए हैं। 2024 को फोकस में रखकर ही भाजपा ने कुलदीप को ज्वाइन कराया था। भाजपा 2024 में गैर जाट वोटरों को अपने साथ लामबंद करने और जाटों के पांच जगह बंटने की उम्मीद रखकर सत्ता की हैट्रिक लगाने की आस लगाए हुए हैं। ऐसे में आदमपुर का उपचुनाव उसके लिए पहली अग्नि परीक्षा थी। आदमपुर में जीत हासिल होने के कारण भाजपा के लिए 2024 के लक्ष्य पर फोकस करना आसान हो गया है।

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अब वह 2 साल तक वह विपक्ष के हमलों से सुरक्षित रहेगी और अपनी सरकार की परफोर्मेंस को सुधारने के लिए काम कर सकेगी। अगर बीजेपी यह चुनाव हार जाती तो उसके लिए जनता को जवाब देना मुश्किल हो जाता और यह संदेश चला जाता कि जब भजनलाल के सबसे मजबूत गढ़ को ही बीजेपी नहीं बचा पाई तो ऐसे में आगामी चुनाव में वह सत्ता से बेदखल हो जाएगी आदमपुर चुनाव को लेकर जिस तरह से भाजपा के जो ख्याली पुलाव थे वह पूरे नहीं हुए।  भाजपा 50000 वोटों से जीत का दावा कर रही थी लेकिन अंत तक आते-आते हालात पूरी तरह पलट गए और भाजपा की हार का खतरा पैदा हो गया। एक बार तो भाजपा की जीत पर भी सवालिया निशान लग गया था लेकिन भजनलाल परिवार के समर्थक वोटरों के अंतिम 2 दिनों में एकजुट होने से भव्य बिश्नोई की नैया पार हो गई।

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खरी खरी बात है कि आदमपुर में भाजपा जीत कर भी हार गई है क्योंकि दोनों पार्टियों के वोट बैंक के हिसाब से उसे 40 या 50 हजार वोटों की जीत हासिल होनी चाहिए थी लेकिन बड़ी मुश्किल से 15000 वोटों से जीत दर्ज कर पाई । अगर इस सीट पर भजनलाल परिवार चुनाव बीजेपी से नहीं लड़ रहा होता तो भाजपा के लिए अपने बलबूते पर 10000 वोट लेना भी मुमकिन नहीं होता। भाजपा के लिए आदमपुर का चुनाव खतरे की घंटी भी है क्योंकि बीजेपी विरोधी वोटरों का लामबंद होना उसके लिए शुभ संकेत नहीं है। 2019 में तो किसी तरह जोड़-तोड़ करके वह सरकार बनाने में सफल रही थी लेकिन 2024 में अगर कांग्रेस के साथ आमने-सामने की टक्कर हुई तो उसके लिए सरकार बचाना बेहद मुश्किल होगा।

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